किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न देकर भारत की जनता ने लोकतंत्र को जीवित कर दिया है :: सहयोगी दलों के पास यदि रेल मंत्रालय रहा तो वृद्ध जनों की राहत बहाल हो जाएगी :: संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता होगी वहाल :: किसान, व्यापारी ,बेरोजगार और मुसलमान लेंगे राहत की सांस :: जनजीवन होगा सामान्य, चालान और जुर्माना संस्कृति होगी समाप्त :: प्रेस की आजादी को लगेंगे पंख और खबरें मिलेंगी निष्पक्ष :: मीडिया से मिट जाएगा गोदी शब्द का कलंक :: एनडीए के चाणक्य का सूर्यास्त ,अब होगा इंडिया के चाणक्य अखिलेश यादव का जलवा :: पांच साल में मिल जाएगा सपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा और 2027 से पूर्व उत्तर प्रदेश को मिलेगी विकासपरक सरकार
जून का महीना भारतीय राजनीति में राजनैतिक गर्मी से परिपूर्ण रहेगा। 9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी से देश में राजनैतिक सरगमियां और तेज हो गई हैं और यह सरगर्मियां तब तक शांत नहीं होंगी जब तक 10 साल से भयंकर गर्मी झेल रही देश की जनता को इस तपिश को शांत करने वाली संविधान सम्मत सरकार रूपी बारिश न मिल जाए। सत्ता और सरकारें परिवर्तनशील होती हैं, जो समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। किसका समय कब पूर्ण हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन समय एक सा नहीं रहता, यह प्रकृति का नियम है । जून का यह महीना देश की राजनीति की दिशा और दशा बदलने वाला सिद्ध होगा। राजनीतिक सरगर्मियों में आजकल दिल्ली का पारा सर्वाधिक ऊंचाई पर है और दिल्ली से जुड़े उसके निकटवर्ती प्रदेश यूपी और राजस्थान के साथ महाराष्ट्र में भी गर्मी का प्रकोप अधिक देखा जा रहा है । सत्ताधारी दल को सर्वाधिक धोखा यूपी और राजस्थान से ही मिला है जहां बढ़ने के स्थान पर स्थिर भी नहीं रह पाए। यूपी में तो गर्मी के मौसम में ही भाजपा की राजनीति शिमला बन गई । इस गर्मी के मौसम को 'शिमला' बनाने का श्रेय किसको जाता है ? शायद इसके लिए दिल्ली और लखनऊ दोनों बराबर बराबर जिम्मेदार हैं। उत्तर प्रदेश को बुलडोजर बाबा का बड़बोलापन और अपनी शक्ति का अहंकार लेकर डूबा, इस अहंकार ने न केवल बाबा को डुबाया, बल्कि पूरी पार्टी की नाव ही अयोध्या से काशी ले जाकर गंगाजी में विसर्जित कर दी, जो राम को लाए थे और राम के बाल रूप को उंगली पकड़कर मंदिर की तरफ ले जा रहे थे अब भविष्य में यूपी की तरफ निगाह तक नहीं कर पाएंगे। वे राम के भक्त हैं और जो राम के साथ हुआ वहीं उनके साथ होगा, भगवान राम का राजतिलक होना था लेकिन 14 वर्ष का वनवास हो गया, ऐसा ही इन राम भक्तों के साथ भी होगा। उत्तर प्रदेश की जनता को जब अपनी उदारता का दुष्परिणाम दिखाई दिया तो उसकी आंखें खुलीं कि यूपी को उसने अतीम बना दिया है। जिस उत्तर प्रदेश ने देश को सर्वाधिक प्रधानमंत्री दिए हैं, वहां से प्रधानमंत्री गुजरात का और मुख्यमंत्री उत्तराखंड का बन गया। अमेठी में भी बाहरी कब्जा हो गया, तो मुख्य सचिव भी बाहर का ही , डीजीपी भी पूर्ण कालिक नहीं, समझ क्या लिया था यूपी की जनता को ? यदि राजपूत ही राजा चाहिए था तो राजनाथ को क्यों नकारा, यदि पिछड़ा ही बनाना था तो अखिलेश को क्यों हटाया और केशव मौर्य को क्यों नहीं बनाया , उन्होंने तो गुजरात के एक और ब्यूरोक्रेट्स को यूपी की कमान संभालने के लिए भेज दिया था वह अब भी लाइन में है।यह कैसी चाणक्यगीरी। उत्तर प्रदेश की जनता ने जितने दुख इन सात वर्षों में झेले उनसे निजात पाने के लिए अब गहनता से मंथन कर रही है। ठोक दो की नीति के तहत थोक के भाव में एन्काउंटर और उस बुल्डोजर के कहर जो निर्माण के लिए बनाए गए थे, उनका प्रयोग ध्वस्तीकरण के लिए किया गया। जनता ने जब यह विचार किया कि नए निर्माण कितने हुए और पुराने निर्माण कितने ढहाए गए, इस प्रदेश को कितनी आर्थिक हानि उठानी पड़ी, इसी मंथन ने जनता का दिमाग बदल दिया। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक आहत तो राज्य की वह 70% आवादी है जो खेती- किसानी पर आधारित है। आवारा पशुओं ने तो किसानों की खेती चौपट की तो सरकारी नौकरियों में हुए पेपर लीक ने युवा पीढ़ी की भी कमर तोड़ दी । अयोध्या और काशी में स्थानीय लोगों की उपेक्षा और गुजरातियों के बढ़ते वर्चस्व ने धर्म क्षेत्र और व्यवसाय से जुड़ी जनता का हृदय परिवर्तित कर दिया । उत्तर प्रदेश की जनता ने अब नई उम्मीद के साथ स्वयं को तैयार कर लिया है।
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