Halat-E-India

लोकतंत्र की भिखारी जनता

सरकार और सरकारी मशीनरी अपने ऊपर खर्च करती है देश की 70% आमदनी :: तहसील को जिला बनाने से बढ़ता है कर्मचारियों का ओहदा, तो प्रदेश के टुकड़े करने से नेता और कर्मचारी, अधिकारी सभी होते हैं लाभान्वित :: जिला अथवा प्रदेश के टुकड़े करने से जनता पर बढ़ता है करों का बोझ :: करों की प्राप्ति से जब बजट सरप्लस होता है तो नेता और अधिकारी, कर्मचारी बढ़ा लेते हैं अपने वेतन -भत्ते :: आम जनता के अधिकार छीन कर भिखारी बना रही है सरकार

'संगठन में शक्ति' और 'अनेकता में एकता' नमक मुहावरे अक्सर चलन में देखे जा सकते हैं। कुछ काम ऐसे होते हैं जो राष्ट्र और समाज हित में होते हैं लेकिन कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने हित (भलाई) के लिए समाज और राष्ट्र के हित से जोड़कर किया जाता है। हमारे देश में भले ही लोकतंत्र है लेकिन यहां की सरकार और सरकारी मशीनरी लोकहित को नकार कर अपने हित के लिए कार्य करती है । इसी कड़ी में जब अधिकारी और कर्मचारी अपना भला चाहते हैं तो तहसील को जिला बनाने की मांग करवा देते हैं ,और जब राजनेता अपना भला करना चाहते हैं तो यह तर्क देते हैं कि अमुक प्रदेश बड़ा है इसका संचालन ठीक से नहीं हो पा रहा है इसके एक या दो टुकड़े होने चाहिए । इसीलिए कहते हैं कि राजनेताओं की वृद्धि और अधिकारियों के प्रमोशन पर रोक लगनी चाहिए, राजनेता हो या अधिकारी, यदि व्यवस्थाओं का संचालन ठीक प्रकार से न कर पा रहा हो तो उसका डिमोशन होना चाहिए। हमारे देश की कुल आय का 70% धन देश की आबादी की चार प्रतिशत संख्या वाली राजशाही और ब्यूरोक्रेसी के वेतन, भत्ते, आवास, वाहन तथा अन्य सुविधाओं पर व्यय हो जाता है शेष बचा 30% धन देश की 96% आवादी के विकास पर खर्च होता है। यही कारण है कि सत्ता की कुर्सी और सरकारी नौकरी पाने के लिए लोग एड़ी से चोटी तक की ताकत लगा देते हैं। हमारे देश के राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स नहीं चाहते कि हमारे देश की जनता उन्नति करे और खुशहाल हो । दोनों मिलकर जनता को कर्ज माफी, किसान सम्मान निधि, वृद्धावस्था पेंशन ,बेरोजगारी भत्ता, छात्रों को भोजन, किताब और ड्रेस का लालच देकर उनकी औकात पर रखना चाहते हैं । पेपर लीक होना, बिना परीक्षा दिए पास कर देना, चुनाव के समय शराब और आर्थिक सहायता देकर वोट ले लेना इत्यादि ऐसी योजनाएं लागू करते हैं की जनता राजनेताओं और अधिकारियों के शाही ठाठ पर उंगली ही न उठा सके। इकाई जितनी बड़ी होगी व्यवस्था उतनी ही उत्तम होगी, जबकि छोटी इकाई में अधिकारी और राजनेता एक दूसरे के रिश्तेदार और बिरादरी या परिवार के होते हैं परिणाम स्वरुप विकास प्रभावित होता है। उत्तराखंड को नया राज्य बने ढाई दशक होने वाले हैं असलियत जान लोगे तो दंग रह जाओगे, यहां केवल राजनेताओं और सरकारी मशीनरी का ही विकास हुआ है । व्यवस्थाएं देखनी हैं तो चार धाम यात्रा देख लो या कावड़ मेला, ऐसा ही अन्य राज्यों में भी है। देवभूमि भारत की विश्व में अलग पहचान है, यहां का हर व्यक्ति, प्रदेश, गांव और जिला महत्वपूर्ण है, लेकिन दो प्रदेश ऐसे हैं जिनकी अलग ही पहचान है, वह हैं गुजरात और उत्तर प्रदेश । महात्मा गांधी मूल रूप से गुजरात के थे, लेकिन उन्होंने आजादी के आंदोलन की शुरुआत उत्तर प्रदेश में जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर की थी। गुजरात और महाराष्ट्र यदि आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो उत्तर प्रदेश राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर संपूर्ण राष्ट्र का संचालन करने की क्षमता रखता है । विडंबना यह है कि गुजरात अब उत्तर प्रदेश पर कब्जा करना चाहता है, एक दशक से चलाए जा रहे विभिन्न प्रयासों में सफलता न मिलने पर अब उत्तर प्रदेश के तीन टुकड़े करने की योजना बनाई जा रही है और उत्तर प्रदेश के यदि और टुकड़े हो गए तो देश बर्बाद हो जाएगा । जिस प्रकार छोटे-छोटे राज्यों को केंद्र अपनी कठपुतली की तरह चला रहा है, वैसा ही उत्तर प्रदेश के टुकड़े होने के बाद इसके साथ भी होगा । उत्तर प्रदेश के राजनेताओं में यदि समर्थ है तो वे इस गौरवशाली राज्य के टुकड़े-टुकड़े न होने दें, इसी में राज्य और राष्ट्र की भलाई है ।

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