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भारत को बनाओ विश्व का सिरमौर

भारत को कृषि प्रधान देश बनाने के लिए कृषि आधारित योजनाओं पर जोर दे केंद्र सरकार: कृषि योजनाओं से बिचौलियों को दूर रखें बैंक: कृषि को प्रोत्साहन देकर विकसित राष्ट्र बन सकता है भारत: राजनीतिक दलों की प्रतिद्वंदता ब्यूरोक्रेसी की देन: सरकार और सरकारी मशीनरी दोनों कृषक पुत्र:नेताओं के नहीं ब्यूरोक्रेसी के इशारे पर चलती हैं सरकारें: जब तक किसान प्रगति नहीं करेगा भारत की प्रगति का सपना अधूरा रहेगा।

किसी भी देश की प्रगति अपने उत्पादों के निर्यात से होती है, लेकिन हमारे देश में आजादी के साढे सात दशक बीतने के बाद भी किसी सरकार ने भारत की कृषि को इतना संबल प्रदान नहीं किया कि भारत कृषि उत्पादों का निर्यातक बनकर विकसित देशों की श्रेणी मेंआ सके। हमारे देश के राजनेता हों या ब्यूरोक्रेट्स सभी का ध्यान उद्योगपतियों या पूजीपतियों की ओर ही रहता है, उन्हीं को कर्जा दिया जाता है और कर्जा अधिक होने पर देश का धन लेकर विदेश भाग जाने का अवसर भी प्रदान कर दिया जाता है। किसानों को गुलाम बनाने के लिए नए नए कानून लाए जाते हैं, जबकि आज तक भारत की सत्ता पर काबिज रही किसी भी सरकार ने किसान को उसकी मेहनत का मूल्य नहीं दिया । न्यूनतम समर्थन मूल्य जो सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है उसमें किसान की मेहनत को सम्मिलित नहीं किया जाता है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि किसान क्रेडिट कार्ड से लेकर कृषि ऋण संबंधी जितनी भी योजनाएं हैं सभी को बैंक बिचौलियों के माध्यम से लागू करते हैं।
सरकार में समता और समरसता का भाव होना चाहिए, सरकार यदि उद्योगों को ऋण और अनुदान देकर उपकृत करती है तो कृषि और कृषकों को भी ऋण एवं अनुदान देने में उदारता बरतनी चाहिए। यह सत्यता है कि केंद्र एवं राज्य सरकार यदि कृषि एवं कृषकों को प्रोत्साहन दे तो भारत पूरे विश्व में खाद्यान्न, फल एवं जड़ी बूटियों का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर चाइना, जापान और अमेरिका से आगे निकल सकता है। भारत सरकार ने जो तीन कृषि कानून बनाए थे उनमें भी किसानों की उन्नति नहीं बल्कि कंपनियों का अधिपत्य स्थापित कर किसान को कंपनियों का गुलाम बनाने का प्रावधान किया गया था। यदि भारत सरकार वास्तव में किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है तो जो सुविधाएं कंपनियों को दी जा रही हैं वे सुविधाएं सीधे किसानों को दी जायें । कई राज्यों में सरकारों ने बोरिंग के पानी पर भी प्रतिवन्ध लगा रखा है, वहां किसान केवल दो फसलें या गन्ने जैसी एक ही फसल साल में एक बार लेता है। हमारे देश में अधिकांश फसलें तीन या चार महीनों में तैयार हो जाती हैं ऐसी स्थिति में किसान अपने खेतों में एक साल में तीन फसलें ले सकता है।हमारे देश का किसान हो या व्यापारी स्वयं प्रयास न केवल और केवल सरकारी सहायता पर ही निर्भर रहता है, जबकि उद्योगपति सरकारी अनुदान का उपयोग अपने प्रयासों से करते हैं, इसीलिए उन्नति की ओर अग्रसर हैं ।यह काम यदि किसान करे तो वह अपनी आय दोगुनी नहीं बल्कि तीन-चार गुनी बढा सकता है।
हमारे देश में एक सबसे बड़ी विडंबना है कि यहां का ब्यूरोक्रेट सरकार को अपनी जेब में रखकर चलाना चाहता है, और वह अपने मकसद में कामयाब भी है। राजनेता एक दूसरे के प्रतिद्वन्दी होते हैं तो ब्यूरोक्रेट एक दूसरे के समर्थक, इसीलिए सरकार किसी भी दल की हो वह नेता के नहीं ब्यूरोक्रेट्स के हाथ में होती है, और यह ब्यूरोक्रेसी इतनी सशक्त है कि सरकार से अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाती है ।यही कारण है कि हमारे देश का मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री उसे ब्यूरोक्रेसी के इशारे पर नाचना ही पड़ता है । किसान का शोषण होने से कौन बचाएगा जब एक मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री वह किसान का ही बेटा होता है, ब्यूरोक्रेट भी किसान के ही बेटे होते हैं लेकिन ब्यूरोक्रेसी उस किसान पुत्र मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को अपने चुंगल में रखकर सरकार चलाती है । इसीलिए हमारा देश आगे नहीं बढ़ पाता, यदि यही सरकार जनप्रतिनिधियों के हाथ में होती तो अब तक हम भी प्रगतिशील नहीं बल्कि विकसित देशों की श्रेणी में होते।

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