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यूपी का उत्तम नेता ?

पीडीए भारत का सबसे बड़ा परिवार :: पीडीए का नेता बने देश का प्रधानमंत्री :: नेताजी की राजनीति से प्रभावित है पूरा देश :: शिवपाल सिंह यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति के सर्वाधिक अनुभवी राजनेता :: राष्ट्र और समाज के विकास के लिए संविधान सम्मत सरकार का होना जरूरी :: अखिलेश और राहुल गांधी में देश संभालने की सभी क्षमताएं :: बुलडोजर और एनकाउंटर के अलावा योगी जी के पास कोई कल्याणकारी अथवा विकास परक योजना नहीं :: जिस संत बेषधारी को अपनी जाति से मोह हो क्या वह योगी हो सकता है?

उत्तर प्रदेश में बुलडोजर और एनकाउंटर की राजनीति भाजपा को ले डूबी है। वैसे तो सभी दलों में अंदरूनी और वर्चस्व की लड़ाई रहती है लेकिन भाजपा के शासन करने की शैली ही निराली है । राजनीति का एक नियम है कि यदि कोई पार्टी या नेता हारता है तो इसका मुख्य कारण उसकी अंदरूनी लड़ाई होती है। जिस प्रकार 2017 के विधानसभा चुनाव में चाचा - भतीजे की अंदरूनी लड़ाई के कारण सपा के हाथ से यूपी की सत्ता खिसकी उसी प्रकार 2024 के लोकसभा चुनाव में गुजरात लावी वनाम योगी सरकार की आपसी खींचतान और एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में भाजपा को करारी हार मिली, और सपा के चाचा - भतीजे जब इकट्ठे हो गए तो सपा ने ऐसी बाजी मारी कि भाजपा के 400 पार का सपना चकनाचूर कर देश की तीसरी ताकत के रूप में सपा उभर कर आयी है। योगी जी अब कहीं के नहीं रहे ? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्य नाथ भाजपा में हिंदुत्व का एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे , हालांकि उनके पास हिंदू- मुसलमान, मंदिर -मस्जिद, और कब्रिस्तान- शमशान के अलावा कोई विकास का एजेंडा नहीं था ,न ही अब है। योगी आदित्यनाथ की पहचान युवा हिंदू वाहिनी से थी और अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ के समय से ही गोरखपुर में इतने मजबूत थे कि ब्राह्मणों के एक बड़े चेहरा के रूप में होते हुए भी हरिशंकर तिवारी उनकी जीत को कभी रोक नहीं पाए। अब हिंदू युवा वाहिनी अस्तित्व में नहीं है, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्री योगी जी के खिलाफ हैं। योगी जी ने पहले अल्पसंख्यकों का विरोध किया, फिर ब्राह्मणों का विरोध किया, फिर यादवों को अपना निशाना बनाया, अपने उपमुख्यमंत्रियों की ऐसी जड़ें काटीं कि उन्हें चुनाव ही हरवा दिया । गोमती नगर ,अयोध्या और कन्नौज के साथ ही सुल्तानपुर डकैती के आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही करने के बाद योगी जी एवं उनकी एसटीएफ तथा पुलिस का इतना विरोध हुआ कि उनका माथा चक्कर खाने लगा । उधर एसटीएफ और पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर में स्वयं को फसता देख योगी जी को जातीय संतुलन बनाने की सलाह दे डाली तो उन्होंने मंगेश यादव वाले केस में ही एक ठाकुर का भी एनकाउंटर करवा दिया , जिससे ठाकुर भी अब योगी जी से खुश नहीं है । अपने चौतरफा विरोध में घिरे योगी आदित्यनाथ ने संत एवं संवैधानिक पद की मर्यादा को तोड़ते हुए वाणी का संयम भी समाप्त कर दिया है जिसकी चौतरफा निंदा हो रही है और इसका खामियाजा आगामी चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ेगा। फिर से बुलंद होगा सपा का सितारा उत्तर प्रदेश में चाचा - भतीजा की राजनीति फिर से रंग लाने लगी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने पिता स्वर्गीय नेता जी से भी आगे बढ़कर ऐसा धोबीपाट चला कि योगी, मोदी, शाह सभी चारो खाने चित्त हो गए और पूरे प्रदेश में आज सपा का ही परचम लहरा रहा है। अखिलेश यादव के राजनीतिक कौशल को देखते हुए न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश के अन्य कई प्रांतों की जनता भी उनके अंदर प्रधानमंत्री पद की छवि देख रही है । अखिलेश यादव ने मंगेश यादव एनकाउंटर के बाद राजनीति का पासा ऐसा पलटा कि योगी और उनकी पुलिस को अपने ऊपर लगा बदनुमा दाग धोने के लिए एक ठाकुर का एनकाउंटर करना पड़ा, जिससे न केवल योगी और भाजपा को नुकसान हुआ बल्कि सपा का पलड़ा इतना भारी हो गया कि अब यूपी के उप चुनाव हों या 2027 का विधानसभा चुनाव सपा की जीत अभी से पक्की मानी जा रही है। एनडीए बनाम इंडिया की लड़ाई हुई तेज जातिगत जनगणना हो या सरकारी नौकरियों में आरक्षण , भाजपा के सहयोगी दल नीतीश ,नायडू, पासवान और जयंत सहित चौटाला और महाराष्ट्र लावी गुजरात लावी से खिन्न हैं । केंद्र में जैसे हालात बन रहे हैं उन्हें देखकर और हरियाणा तथा जम्मू कश्मीर चुनाव के बाद केंद्र में एक बड़ी उथल-पुथल होने वाली है, और यदि एनडीए की सरकार गिरी और इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिला तो अखिलेश यादव को प्रधानमंत्री सहित कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है, क्योंकि अखिलेश यादव के पास सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद है इसलिए पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना भी उनका दायित्व है जिसे वे केंद्र में रहकर ही पूरा कर सकते हैं। अखिलेश बने पीएम तो कौन होगा यूपी का सीएम? सपा पर जातिवादी होने का आरोप लगाने वाले योगी जी ने सत्ता में आते ही अपनी जाति को इतना प्रश्रय दिया कि थाने और जिले से लेकर सचिवालय तक सभी जगह मुख्यमंत्री के सजातीय ही नजर आने लगे और योगी जी की पहचान हिंदू नेता के स्थान पर एक ठाकुर नेता के रूप में होने लगी। अखिलेश यादव ने यह सिद्ध कर दिया कि संत भी जातिवादी होते हैं और मठाधीश तथा माफिया में कोई अंतर नहीं होता है । अखिलेश यादव की कूटनीति को तो पूरे देश ने तब सलाम किया जब उन्होंने मंगेश यादव के एनकाउंटर का बदला लेने को अनुज प्रताप सिंह का एनकाउंटर करने के लिए योगी तथा उनकी पुलिस को मजबूर कर दिया । रक्षामंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव की केंद्रीय राजनीति देखने के बाद जब उन्होंने सेनाओं को सीमा खुली छूट दी थी तथा शहीद होने वाले प्रत्येक जवान के पार्थिव शरीर को उसके गांव राष्ट्रीय ध्वज के साथ ले जाने तथा जिला प्रशासन द्वारा सलामी देने का प्रावधान किया था और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने चुंगी समाप्त कर किसानों को बड़ी राहत दी थी इसीलिए देश की जनता चाहती है कि अब अखिलेश यादव को देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। एनडीए में चल रही भारी उठा पटक के बीच ऐसे आसार दिखाई देने लगे हैं कि मोदी सरकार अपना तीसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी और इंडिया गठबंधन की सरकार बन सकती है। इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी और अखिलेश यादव दोनों ही देश की बागडोर संभालने में सक्षम हैं और ऐसा हो सकता है। केंद्रीय मंत्री की तुलना में राज्य के मुखिया की हैसियत बड़ी होती है ,यदि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बने और अखिलेश केंद्रीय मंत्री बने तो 2027 में अखिलेश यादव यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं और यूपी के मुख्यमंत्री बनेंगे ।लेकिन यदि अखिलेश यादव प्रधानमंत्री बन गए तो यूपी के मुख्यमंत्री शिवपाल सिंह यादव बनेंगे। यूपी संभालने में नंबर वन होंगे शिवपालसिंह यादव 2027 में समाजवादी पार्टी के पास शिवपाल सिंह यादव ही एकमात्र ऐसे चेहरे होंगे जो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की सत्ता का संचालन कुशलता पूर्वक कर सकते हैं। शिवपाल सिंह यादव शिक्षित और अपने बड़े भाई सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ जमीन से जुड़े नेता रहे हैं ,वे सपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पूरे प्रदेश के हर जिले और तहसील स्तर के कार्यकर्ता से सीधे जुड़े हैं, राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वाह करने के साथ राज्य सरकार में सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे हैं। कई बार विधायक होने के साथ ही चुनावी रण कौशल में भी माहिर हैं सत्ता पक्ष और विपक्ष में कैसे संतुलन बनाना है और ब्यूरोक्रेसी की लगाम कैसे कसी जाएगी उन्हें अच्छा अनुभव है । शिवपाल सिंह यादव के अंदर जो सबसे बड़ी विशेषता है वह यह है कि वे कार्यकर्ता को पूरा सम्मान देते हैं और जो एक बार उनसे जुड़ जाता है आजीवन उनका मुरीद बन जाता है। यदि ऐसा हुआ तो न केवल यूपी बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष में समाजवाद का ऐसा परचम लहराएगा की भारत का संविधान, संस्कृति और स्वतंत्रता अपने वास्तविक स्वरूप में लौट आएंगे।

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