यूपी - उत्तराखंड के संतों ने दी स्वामी राघवानंद सरस्वती को श्रद्धांजलि :: धर्म एवं संस्कृति के संरक्षण - संवर्धन को समर्पित रहता है संतों का जीवन :: सच्चे संतों को ही होती है सुयोग्य शिष्य की प्राप्ति :: गुरु - शिष्य परंपरा का सच्चे मन से निर्वाह करने वाला ही वास्तविक संत :: वासना के बिस्तर से तो सभी का जन्म होता है, लेकिन जो दंपति संस्कारित सहवास नियमों का पालन करते हैं उस परिवार से संत का प्राकट्य होता है :: तप और त्याग से संतत्व की प्राप्ति होती है :: संत ही शिष्य को भगवत कृपा का साक्षात्कार कराते हैं और संतों के सानिध्य में आने वाला ही परमानंद को प्राप्त कर जीवन सार्थक बनता है। बोलो गंगा मैया की जय!
हरिद्वार ।अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष तथा महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रवींद्रपुरी जी महाराज ने कहा है कि स्वामी राघवानंद सरस्वती सच्चे संत और सनातन संस्कृति के संवाहक थे। हरिद्वार और वृंदावन में उन्होंने संत सेवा के जिन प्रकल्पों का शुभारंभ किया वे संत समाज के लिए अनुकरणीय हैं । वे आज उत्तरी हरिद्वार के गंगाभक्ति आश्रम के संस्थापक स्वामी राघवानंद सरस्वती की तृतीय पुण्यतिथि के उपलक्ष में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह को मुख्य अतिथि पद से संबोधित कर रहे थे। गंगाभक्ति आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी कमलेशानंद सरस्वती के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए उन्होंने कहा कि अच्छे संत को ही सुयोग्य शिष्य की प्राप्ति होती है, और हरिद्वार में गंगा भक्ति आश्रम तथा वृंदावन में यमुना बिहारी आश्रम में धर्म एवं समाज सेवा के जिन प्रकल्पों का संचालन सफलतापूर्वक हो रहा है बे युवा संतों के लिए अनुकरणीय हैं । श्रद्धांजलि सभा को अध्यक्षीय पद से संबोधित करते हुए जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी शारदानंद सरस्वती ने कहा कि संतों के जीवन का उद्देश्य ही समाज में समरसता का वातावरण बनाकर धर्म और संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्धन करना होता है और स्वामी राघवानंद सरस्वती ने देवभूमि उत्तराखंड के द्वार पर गंगा भक्तों के लिए तथा उत्तर प्रदेश के वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायियों के लिए जिन सेवा प्रकल्पों का शुभारंभ किया उनके सुयोग्य शिष्य स्वामी कमलेशानंद सरस्वती के सानिध्य में सभी का कुशल संचालन हो रहा है, यही वास्तविक संतत्व का उद्देश्य है। वृंदावन धाम से पधारे महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने उनके साथ साझा किया सत्संगों के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उन्होंने संत जीवन का एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया कि धर्म, संस्कृति और समाज सेवा ही उनके जीवन का उद्देश्य बन गया था, उनके इन्हीं सद्गुणों को आत्मसात कर उनके सुयोग्य शिष्य स्वामी कमलेशानंद सरस्वती दोनों आश्रमों का सफल संचालन कर रहे हैं। महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद में वृंदावन धाम में पुराने कालीदह रोड परिक्रमा मार्ग पर यमुना बिहारी आश्रम के तत्वावधान में अनवरत संचालित चाय- बिस्किट सेवा को भक्तों की सेवा को नारायण की पूजा बताते हुए कहा कि भगवान के भक्तों की सेवा ही नारायण की सच्ची पूजा है और वृंदावन के यमुना बिहारी आश्रम में यह सेवा वर्ष पर्यंत चलती रहती है। बड़ा अखाड़ा उदासीन के कोठारी श्रीमहंत राघवेंद्रदास ने स्वामी कमलेशानंद सरस्वती को गुरु - शिष्य परंपरा का निष्ठा पूर्वक निर्वाह करने के लिए आशीर्वाद देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की ।श्रद्धांजलि सभा का संचालन स्वामी सत्यव़तानंद सरस्वती ने किया। सभी संत महापुरुषों एवं भक्तों का आभार व्यक्त करते हुए श्रीगंगाभक्ति आश्रम के परम अध्यक्ष स्वामी कमलेशानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान ने धर्म एवं समाज सेवा के जिन प्रकल्पों का शुभारंभ किया था उनमें भक्तों, अनुयायियों तथा ट्रष्टियों के सहयोग से लगातार वृद्धि हो रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता रावेश कुमार सिंह ने पूज्य सदगुरुदेव के श्रीचरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि जिस परिवार में संत का जन्म होता है उसकी सात पीढ़ियां संस्कार और संस्कृति से ओतप्रोत रहती हैं । स्वामी राघवानंद सरस्वती को श्रद्धांजलि एवं स्वामी कमलेशानंद सरस्वती को साधुवाद देने वाले संतों में प्रमुख थे महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी रुपेंद्र प्रकाश, स्वामी हरि बल्लभ दास शास्त्री ऋषि रामकृष्ण महंत कृष्णदेव ,स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी हरिहरानंद तथा महंत शुभम् गिरी सहित वृंदावन एवं हरिद्वार के संतों के साथ ही बड़ी संख्या में उनके अनुयायी एवं वक्त उपस्थित थे।
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