कृषि प्रधान देश के किसान ही बना सकते हैं भारत को विश्वगुरु :: किसानो की आय बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाती है सरकार लेकिन धरातल पर उतारने से नदारत :: भ्रष्टाचार और मिलावटखोरी रोकने को बने कठोर कानून :: जहां संविधान का सम्मान नहीं होता वह देश प्रगति नहीं कर सकता :: कहने मात्र से विश्वगुरु नहीं बनेगा भारत :: भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए राजशाही और ब्यूरोक्रेसी में देशभक्ति का भाव विकसित करना जरूरी :: देश को महान बनाओ स्वयं महान बन जाओगे ।
भारत दुनिया का सर्वाधिक उन्नतशील राष्ट्र है और भारत जैसी प्रतिभाएं पूरे विश्व के एक-दो देशों में ही देखने को मिलती है। अपनी आजादी के बाद भारत ने लगातार जो प्रगति की उससे पूरे विश्व में इस देश की अलग पहचान बनी है तथा शक्ति और सामर्थ्य में भी तीसरा-चौथा स्थान है, लेकिन हमारे देश की वर्तमान राजनीतिक दशा और दिशा ने जो ब्रेक लगाया उससे विकास की गति कमजोर हुई और विनाश का वातावरण बनना प्रारंभ हो गया। देश की राजनीति में कुछ अल्पशिक्षित, अपात्र और बदजुबान लोगों का ऐसा प्रदार्पण हुआ कि उन्नति और विकास का वातावरण काफी प्रभावित हुआ है ।भ्रष्टाचार, मुनाफाखोरी और खाद्य पदार्थों की मिलावट ने तो पूरी मानवता को ही विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है। इन सभी विसंगतियों के लिए सरकार और सरकारी मशीनरी अप्रत्यक्ष रूप से दोषी है । इन सभी दोष और विसंगतियों का कारण पैसा पाने की इच्छा का प्रबल होना है , भ्रष्टाचार बढ़ने से विकास रुका जिसका मुख्य कारण देश में घटिया और कमजोर कानून है। कानून व्यवस्था क्या है और संविधान की हालत कैसी है? किसी से छिपी नहीं है। भारत में विकास के रुकने का मुख्य कारण कानून का घटिया और कमजोर होना तथा भ्रष्टाचार और मिलावटखोरी का बढ़ना है। भ्रष्टाचार ऐसा कोढ़ है जो नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के पेट से पैदा होकर पूरे देश को घुन की तरह खोखला कर रहा है। सरकार और सरकारी मशीनरी अपना वेतन, भत्ते, सुविधाएं और कमीशन बढ़ा रही है ,आम जनता पर करों, जुर्मानो और महंगाई का भार बढ़ रहा है । दोषी होने पर भी सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हो रही है, जबकि आम जनता के ऊपर बुलडोजर चलाकर विकास को बर्बादी में बदला जा रहा है । अब तो एक नई परंपरा प्रारंभ कर दी गई है कि अपराधों से मुक्त होना है तो सरकारं शरणम् गच्छामि हो जाओ, सारे गुनाह माफ हो जाएंगे और भ्रष्टाचार तथा अनाचार करने का अघोषित प्रमाण पत्र मिल जाएगा। जब तक सरकार और सरकारी मशीनरी को संविधान के दायरे में नहीं लाया जाता तब तक न तो निष्पक्ष चुनाव होंगे , न ही आम जनता के साथ न्याय। देश की प्रवृत्ति का आधार इस देश की वह 70% आबादी की उन्नति है जो गांव में रहकर कृषि कार्य करती है। हमारी सरकार और सरकारी मशीनरी कृषि और कृषक दोनों को सुविधाएं न देकर सुविधा देने वाली योजनाओं की घोषणा तो कर देती है लेकिन उनका क्रियान्वयन न कर उनको भ्रष्टाचार के दलदल में धकेल देती है, परिणामस्वरुप देश की 70% आबादी विकास के लिए तरस रही है। सरकारी योजनाओं का अध्ययन किया जाए तो केसीसी से लेकर एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड तक की दर्जनों योजनाएं किसानो की आय बढ़ाने के लिए ही बनाई गई है लेकिन धरातल पर उनका क्रियान्वयन कितना हो रहा है किसी को इस तरफ सोचने की फुर्सत ही नहीं है। सरकार अपने देश के किसानों को प्रोत्साहित न कर किसी खाद्य पदार्थ की कमी होने पर उसका आयात तो कर लेती है लेकिन उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों की सहायता नहीं करती है। हमारे देश में तिलहन, दलहन और सब्जियों का उत्पादन लगातार गिर रहा है, कृषि भूमि पर उद्योग तो लग रहे हैं, कालोनियां कट रही हैं लेकिन उसका संरक्षण और संवर्धन करने की सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है और जो नियम कानून बने हुए हैं उनमें भ्रष्टाचार को इतना घुसा दिया गया है कि महंगाई और बेरोजगारी का बढ़ना स्वभाविक है। देश की 10% राजशाही और ब्यूरोक्रेसी ने इस 70% आबादी को इतना पंगु बना दिया कि उन्नति के अवसर बंद नजर आ रहे हैं। कुछ राजनेता और धर्माचार्य देश को विश्वगुरु बनाने की बात तो कर रहे हैं लेकिन भारत की 70% आबादी के विकास को दरकिनार कर विश्वगुरु के सपने को साकार नहीं किया जा सकता है।
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