राज्य बनने के बाद विलुप्त हो गया उत्तराखंड से आलू अदरक का स्वाद :: कृषि और कृषक विहीन होने के कगार पर जा रहा उत्तराखंड :: हिमालय के अद्भुत संसाधनों का उपयोग नहीं कर पा रही सरकार :: कृषि उपज से ही मिलेगी उत्तराखंड को देश में अलग पहचान :: तीर्थाटन और पर्यटन में बढ़ी महंगाई से आगंतुकों का हो रहा मोह भांग ::किसान होगा खुशहाल तो प्रदेश होगा मालामाल :: जड़ी- बूटी उत्पादन से बनेगा समृद्धशाली उत्तराखंड ।
उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रगतिशील प्रदेश है, यहां विकास की अपार संभावनाएं पहले भी थीं और आज भी हैं। ऐसा नहीं कि इस मामूली सी प्रगति और विकास को ही हम अपनी बहुत बड़ी उपलब्धियां समझकर विकास यात्रा रोक दें, बल्कि राज्य स्थापना की प्रत्येक वर्षगांठ मनाते समय उत्तरोत्तर उन्नति का संकल्प लें । राज्य का स्थापना दिवस कोई औपचारिकता नहीं बल्कि इस दिन सभी राजनीतिक दलों एवं सम्पूर्ण ब्यूरोक्रेसी को एक मंच पर आकर संकल्प लेना होगा कि हम सब मिलकर इस भारत का भाल कहलने वाले हिमालयी राज्य को अपने देश की प्रथम पंक्ति में कैसे खड़ा कर पाएंगे। ् राज्य बनने के बाद जो उपलब्धियां हासिल की उनमें प्रथम निर्वाचित सरकार का योगदान सराहनीय है लेकिन यदि उसमें कोई कमी रह गई तो वह यही है कि राज्य के मैदानी भाग का औद्योगिकरण होने के कारण और पर्वतीय क्षेत्र में कोई लघु उद्योग स्थापित न होने के कारण राज्य का जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ वह यही है कि पहाड़ से मैदान की ओर पलायन तेजी से बढ़ा और देखते ही देखते पूरे पहाड़ आधे से ज्यादा खाली हो गए। जो काम प्रारंभ में होना चाहिए था वह बाद में हुआ, तब तक काफी देर हो चुकी थी। वर्तमान में पहाड़ पर रेलवे लाइन का भी विकास हो रहा है और सड़क मार्ग भी मैदानी क्षेत्र की तरह ही चौड़ा हो गया है, यही कार्य राज्य निर्माण के तुरंत बाद प्रारंभ हो जाता तो शायद यह दिन देखने को नहीं मिलते। पहाड़ का प्रारंभिक विकास न होने का मुख्य कारण यहां के राजनेताओं नौकरशाही मे राज्य निर्माण के प्रति जिम्मेदारियां कम अपेक्षाओं का अधिक होना बताया जाता है , वरना एक दशक से भी अधिक समय के लिए विशेष राज्य का दर्ज होने के बाद भी स्थिति यह है कि आज भी राज्य केंद्र की बैसाखी पर टिका है और ढाई दशक पूरे होने को हैं लेकिन 24 वर्षीय यह तरुण अपने पैरों पर अभी तक खड़ा नहीं हो पाया, लेकिन यह सत्य है कि यहां के राजनेता एवं ब्यूरोक्रेट्स इतने मजबूत हो गए कि उनकी आने वाली 10 पीढ़ियां भी यदि दोनों हाथों से दौलत लुटाएं तो भी टकसाल में कमी नहीं आएगी। नया राज्य बनने के बाद इस प्रदेश की जो पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बननी थी वह राष्ट्रीय स्तर पर भी नहीं बन पायी, बल्कि जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ वह यही है कि उत्तराखंड के उत्पादों को पूरा देश तरस गया। जिस हिमालय की अदरक, आलू और फल अपनी विशेष गुणवत्ता के लिए अलग पहचान रखते थे वे आज केवल स्वप्न ही बन कर रह गए हैं और वर्तमान स्थिति यह है कि निकट भविष्य में इन खोए हुए उत्पादों का स्वाद दोबारा लौट पाएगा इसकी उम्मीदें भी कम है। नया राज्य बनने के बाद जो चीज तेजी से कम हुई वह है कृषि भूमि यदि यह कहा जाए कि उत्तराखंड कृषि और कृषक शून्य होता जा रहा है तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। राज्य बनने से पहले यह कहा जाता था कि उत्तराखंड का पानी और जवानी दोनों दूसरे के काम आते हैं, यह बात तब थी जब जब उत्तराखंड संयुक्त उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, अब यह बात सिद्ध हो गई है कि यह जुमला केवल कहने मात्र का था । अब जब दो दशक से अधिक का समय हो गया है तो राज्य ने अपने पानी और जवानी के लिए क्या किया यह अनुत्तरित प्रश्न है। हरिद्वार में शांतिकुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य कहा करते थे कि हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा लेकिन अब उत्तराखंड के राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स तो दोनों ही मालामाल हो गए हैं लेकिन 24 वर्षीय यह राज्य अभी अपने पैरों पर नहीं खड़ा हो पाया और इतना कर्जदार हो गया कि इसकी उम्मीदें भी काम की जा सकती है । राज्य के युवा मुख्यमंत्री से जनता को बहुत कुछ उम्मीदें हैं, शायद जो अब तक नहीं हो पाया इसकी शुरुआत माननीय मुख्यमंत्री अब कर पाएंगे, ऐसा जनता का विश्वास है।
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