ऊर्जा एवं आयुष के माध्यम से उत्तराखंड बन सकता है भारत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और संपन्न राष्ट्र:: उत्तराखंड में जल प्रबंधन पर बनानी होगी विशेष योजनाएं:: उत्तराखंड की जड़ी बूटियों से पूरे देश को प्रदान कर सकते हैं आरोग्य:: ऑर्गेनिक फार्मिंग से भी उत्तम होगी उत्तराखंड के कृषि और बागवानी उत्पादों की गुणवत्ता:: राज्य के समग्र विकास के लिए सरकार को स्वयं उठाना होगा क्षेत्रवाद से ऊपर:: सब का साथ लेने से ही होगा राज्य का समग्र विकास।
हिमालय पर्वत भारत का भाल और उत्तराखंड भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसमें विकास की अपार संभावनाएं हैं , जिन पर कार्य किया जाए तो वास्तव में यह धरती का स्वर्ग सदृश राज्य बन जाएगा ।उत्तराखंड के जल और वायु दोनों ही मानव स्वास्थ्य के लिए संजीवनी का कार्य कर सकते हैं, त्रेता युग में लक्ष्मण जी को जब शक्तिवाण ने मूर्छित किया था तब भी हनुमान जी इसी हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी ले गए थे । एक कहावत है कि उत्तराखंड का पानी और जवानी दोनों बर्बाद हो रहे हैं , यहीं पर मां गंगा और यमुना के उद्गम स्थल हैं जो बद्री- केदार के साथ मिलकर चार धाम यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं। उत्तराखंड ही भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां दवा भी है और दुआ भी है। उत्तराखंड को आयुष एवं ऊर्जा प्रदेश बनाकर भारत का सर्वोत्कृष्ट राज्य बनाया जा सकता है , राज्य में विकास की बुनियाद या तो यहां की पहली निर्वाचित सरकार के मुख्य सेवक पंडित नारायण तिवारी ने औद्योगीकरण के माध्यम से की थी या अब वर्तमान युवा मुख्यमंत्री ने जमरानी बांध जैसे प्रोजेक्ट की शुरुआत करवाकर की है। उत्तराखंड में शक्ति नहर पर बना चीला पावर हाउस उत्तर प्रदेश सरकार के कार्यकाल में बना, तो टिहरी बांध भी केंद्र सरकार की सहायता से उत्तर प्रदेश सरकार ने ही बनवाया था जो उत्तराखंड ही नहीं भारत का गौरव है। उत्तराखंड नया राज्य बनने के बाद कुछ ऐसी कट्टरपंथी शक्तियां सक्रिय हो गई जो धर्म के नाम पर विकास का विरोध करने लगीं। कुछ संतों ने भी बांधों के विरोध में भेड़चाल चली , गंगा को बांधने का विरोध किया, गंगा से खनन का विरोध किया, परिणामस्वरूप अवैध खनन का कारोबार फलने फूलने लगा। नदियों पर बांध न बनने से सारा जल बर्बाद होने लगा, हिमालय से कृषि और बागवानी समाप्त हो गई, पहाड़ पर पानी का प्रयोग न होने से मैदान में बाढें आनी शुरू हो गईं जो बर्बादी का सबब बन रही हैं ।उत्तराखंड नया राज्य बनने के बाद लगभग ढाई दशक होने वाला है तब केंद्र सरकार ने जमरानी बांध को आर्थिक स्वीकृति प्रदान की, निश्चित ही इस बांध के बनने से न केवल ऊर्जा का उत्पादन होगा बल्कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में सिंचाई तथा पेयजल की समस्या का भी समाधान होगा । हमारी सरकारें "जल संचय जीवन संचय" का नारा तो देती हैं लेकिन इससे संबंधित न तो कोई योजना बनाती हैं न ही जल संरक्षण पर कोई कार्य हो रहा है।"जल ही जीवन है" विषय को यदि अभी से गंभीरता पूर्वक नहीं लिया गया तो निकट भविष्य में भयंकर जल संकट से जूझना पड़ सकता है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मुहिम जमरानी बांध पर कारगर हुई तो उन्होंने और लखबाड़ हाइड्रो प्रोजेक्ट का भी काम करना प्रारंभ कर दिया है। उनका मानना है कि 25 मेगावाट तक के उन हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए प्रयास करेंगे जिससे राज्य के पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। हिमालय पर्वत पर नदियों की इतनी बड़ी श्रृंखला है कि प्रत्येक नदी पर प्रत्येक 10 किलोमीटर की दूरी पर छोटे-छोटे बांध बनाकर न केवल ऊर्जा की प्राप्ति होगी बल्कि पहाड़ से लेकर मैदान तक सिंचाई व्यवस्था में इतना बड़ा सुधार होगा कि वर्षा जल से सिंचित होने वाले 50% से अधिक कृषि उत्पादन स्वतः ही ऑर्गेनिक हो जाएंगे ।पहाड़ और मैदान में यदि वर्षा जल संचित करने की व्यवस्थाएं बना ली जाएं तो भारत का विश्व बाजार पर अपनी गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए एकाधिकार हो सकता है। भारत के खाद्य पदार्थ विश्व बाजार में सर्वोच्च शिखर पर पहुंचकर एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर सकते हैं और इसका प्रारंभ उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश से होना चाहिए तभी भारत विश्व में अपनी अलग पहचान बना सकता है।
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