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विकास के लिए बदलाव जरूरी

बदलाव से ही विकास का जन्म होता है :: भारतवर्ष को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने के लिए एक-एक राज्य को विकसित बनाना होगा :: भट्टा ईट के स्थान पर करना होगा रेत बजरी की ईट का प्रयोग :: उपजाऊ भूमि और लकड़ी को बचाना है तो ईट भट्टों पर लगाना होगा प्रतिबंध :: नई तकनीक से पहाड़ों पर भी स्थापित हो सकते हैं बड़े प्रसंस्करण उद्योग ।

जल, जंगल ,जड़ी -बूटी और खनिज संपदा से संपन्न उत्तराखंड भारत का आदर्श राज्य बन सकता है, इसके लिए राजशाही और नौकरशाही को हृदय में उदारता लाकर इच्छा शक्ति दृढ़ करनी होगी तथा स्वार्थ से ऊपर उठकर विकास को उन्नति पथ पर संचालित करना होगा। विश्व के कई देश स्वयं को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में दिखाकर भारत से श्रेष्ठ होने का दावा करते हैं उनकी विकास यात्रा का अध्ययन कर संशोधित नीति के माध्यम से उन सबसे आगे बढ़ा जा सकता है । भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने के लिए इसकी शुरुआत देश के राज्यों से करनी चाहिए और उत्तराखंड देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां विकास की अपार संभावनाएं हैं जिनको साकार किया जा सकता है। उत्तराखंड को आदर्श राज्य की श्रेणी में लाने के लिए सबसे पहले यहां की भवन निर्माण तकनीकी में बदलाव करना होगा। ईट भट्टा प्रणाली अब समय की आवश्यकता के अनुरूप बंद होनी चाहिए, इसमें उपजाऊ मिट्टी और लकड़ी का प्रयोग होता है तथा ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है जिससे वायु भी प्रदूषित होती है। उत्तराखंड के पास पहले से ही कृषि क्षेत्रफल काफी कम था जो राज्य बनने के बाद तेजी से सिकुड़ता चला गया कुछ भूमि उद्योगों ने ले ली तो शेष बची भूमि पर कॉलोनी तथा परिसर बनकर तैयार हो गए और दो दशक बीतते बीतते कृषि भूमि चौथाई रह गयी जबकि पहाड़ों से कृषि और बागवानी एवं जड़ी बूटी उत्पादन का ग्राफ गिरने से राज्य की माली हालत भी बिगड़ गई है । विकास के लिए बदलाव की आवश्यकता होती है और यह सत्य है कि बिना बदलाव के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। उत्तराखंड एक ऐसा हिमालयी राज्य है जहां भूकंप की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है । हैवीवेट भवनों का निर्माण महंगा भी है और जलवायु के विपरीत भी है । वैसे भी भारत के अलावा अनेक देश अपनी भवन निर्माण प्रणाली को बदल चुके हैं। ईंट भट्टों से कृषि भूमि और जलवायु दोनों का नुकसान होता है जबकि उत्तराखंड के पास खनन सामग्री (रेत-बजरी) का भंडार है यदि मैदानी भागों में हैवीवेट भवनों की आवश्यकता है तो भट्टा ईट के स्थान पर रेत बजरी का भी प्रयोग किया जा सकता है । हरियाणा और चंडीगढ़ के अलावा देश के कई क्षेत्रों में नई तकनीकी के भवनों का प्रयोग किया गया जो अब तक सफल माना जा रहा है। हरिद्वार में एक अतिथि गृह भी इसी प्रणाली से बनाया गया और सिडकुल की कई फैक्ट्रियां नट बोल्ट के सहारे खड़ी की गई हैं जो शीघ्र ही बनती भी हैं तथा सस्ती भी पड़ती हैं और यदि इसे अन्यत्र स्थानांतरित करना पड़े तो निर्माण सामग्री भी सुरक्षित रहेगी। यदि इसी तकनीकी से उद्योगों का निर्माण किया जाए तो यह प्रयोग पहाड़ पर भी सफल हो सकता है और जड़ी बूटी तथा फलों की प्रोसेसिंग कर राज्य को अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है। इस लेख के माध्यम से राज्य सरकार से निवेदन है कि राज्य सीमा विशेष कर मैदानी क्षेत्रों में लगे ईट भट्टों को प्रतिबंधित कर उनका विकल्प तैयार किया जाए ताकि कृषि भूमि को बचाकर वायु प्रदूषण को रोका जा सके। जिन ईट भट्टों का कभी भवन निर्माण में विशेष योगदान होता था वै आज विकास के स्थान पर विनाश के पर्याय बनते जा रहे हैं ।कृषि भूमि और लकड़ी के बढे दामों के कारण ईट निर्माण उद्योग भी कमाई वाला धंधा नहीं रहा है, ऐसी स्थिति में इसका बंद होना राज्य और समाज दोनों के हित में होगा ।इसके लिए राज्य सरकार को नीति बदलनी पड़ेगी जिस पर यदि शीघ्र कार्य प्रारंभ हुआ तो भविष्य में मजबूरन करना पड़ेगा।

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