अन्न और जल प्रकृति के उपहार हैं, जिसका सेवन करने से इंसान का जीवन चलता है:: अनाज, फल, सब्जी और दूध सब कुछ किसान ही पैदा करता है :: किसान इस प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग है :: जिस दिन किसान खत्म हो जाएगा, उसी दिन से जीवन समाप्ति की ओर चला जाएगा :: किसान अपनी पैदावार का स्वरूप बदलें और रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती अपनाएं :: जैविक खेती से किसान आत्मनिर्भर बनेगा और खाद, कीटनाशक तथा डीजल इत्यादि के खर्चे से मुक्त होगा :: जीवन के लिए उपयोगी खाद्यान्न उत्पादित करें किसान
कृषि प्रधान देश में किसान कैसे बन सकता है प्रधान, अब यह सोचने और विचार करने ही नहीं बल्कि इस स्लोगन को साकार करने का समय आ गया है । यह सच्चाई है कि हमारे देश का किसान जीतोड़ मेहनत करता है लेकिन उसकी मेहनत का फल उसे नहीं मिलता है । किसान आंदोलन 2022 से 23 तक लगभग 13 महीने चला और 24 में भी किसानों ने अपनी बात सरकार के सामने रखने के लिए दिल्ली आना चाहा लेकिन उन्हें नहीं आने दिया गया। हर चुनाव में नेता किसान के पास आता है और किसान उसे जितवा कर दिल्ली भेज देता है, लेकिन विडंबना देखें कि वही किसान जब दिल्ली आना चाहता है तो उसे रोक दिया जाता है ,आखिर ऐसा क्यों ? हमारे देश में किसानों की जनसंख्या भी 70% है और आम आदमी की जरूरत की 70% सामग्री भी किसान से ही मिलती है, इतना ही नहीं किसी भी नेता को जीतने के लिए भी किसान के वोट की आवश्यकता होती है। शहर और कस्बों में रहने वाली आबादी से 25 - 30% नेता जीत तो सकते हैं लेकिन दिल्ली में सरकार नहीं बना सकते । इस बात का शायद किसान को एहसास नहीं है, और यही एहसास जिस दिन किसान ने इन नेताओं को करवा दिया उसी दिन के बाद किसानों को दिल्ली जाने से रोकना नहीं बल्कि चुनाव जीतने के बाद भी इन नेताओं को किसानों के पास ही आना पड़ेगा। किसानों को अपनी बात मनवाने के लिए केवल दो काम करने होंगे, पहला तो यह कि चुनाव में किसी भी प्रत्याशी से चाहे वह किसी भी दल का हो, किसी प्रकार का लालच नहीं करना है। न तो शराब पीनी है और न ही नोट के बदले वोट का सौदा करना है। यही कच्चा लालच है जो किसान को बेचारा बनाए हुए और वह आंदोलन जीवी, खालिस्तानी या किराए की भीड़ इकट्ठा करने वाले, 20-20 लाख की गाड़ियों में चलने वाले इत्यादि संबोधनों का सामना करना पड़ता है । यह लोकसभा के आम चुनाव का समय है और राजनेता चुनाव में भी आपके पास न आकर आपकी मेहनत की कमाई का धन-लुटाकर बड़ी-बड़ी रैली तथा जनसभाओं का आयोजन करते हैं । आप उनकी मीठी चुपड़ी तथा लालच भरी बातों में आकर अपना बहुमूल्य ही नहीं अमूल्य वोट देकर उनको अपने ऊपर राज करने, लाठी डंडा बरसाने, तरह-तरह के चालान कटवाने, उपज का सही मूल्य न देने, नोटबंदी झेलने और कोरोना जैसी महामारी में भी सरकारी मशीनरी की हिटलर शाही सहने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते । केवल चुनाव ही 5 साल बाद एक दिन का ऐसा अवसर आपके पास आता है कि इन नेताओं से आप मिल सकें और अपनी बात कर सकें, आपके पास अब यह अधिकार भी नहीं है, क्योंकि नेता तो हवाई मार्ग से आते हैं और लाखों की भीड़ को आधे से एक घंटे में संबोधित कर रफूचक्कर हो जाते हैं, आप फिर भी उन्हें वोट दे देते हैं। किसान जब तक इन नेताओं से अपने घर या गांव में रूबरू नहीं होंगे तब तक वह क्यों आपकी एहमियत समझेंगे। किसान को चाहिए कि वह आंदोलनजीबी न बन कर स्वावलंबी बने, धान, गेहूं, गन्ना और आलू की फसल से आगे बढ़कर तिलहन, दलहन, फल, सब्जी और मिर्च मसाले की मिश्रित पैदावार कर स्वयं को अपने पैरों पर खड़ा कर लें । अपनी उपज की स्वयं प्रोसेसिंग करें, दुग्ध उत्पादन करें तो उसके सभी उत्पाद स्वयं बनाएं, ऐसा भी नहीं की दूध बेचकर डालडा घी, रिफाइंड और बाजार से मिलावटी तेल खाकर अपनी सेहत खराब कर रहा है।हद तो इस बात की है कि किसान देसी घी भी बाजार की डेरी से क्रीम वाला लाता है । केमिकल से बना रिफाइंड खाता है, महंगी दाल और सब्जियां खरीद कर अपनी मेहनत की कमाई बर्बाद कर रहा है । साथियों आज नहीं तो कल हमारे बच्चे हमसे अवश्य पूछेंगे कि सर्वसाधन संपन्न होने के बाद भी आपने हमें नौकरी करने के लिए क्यों मजबूर किया ? इस बात का हमारे पास कोई जवाब नहीं होगा ।अतः हमें इस समय सोच समझकर अपनी सरकार बनानी है और यह मौका चूक गए तो शायद दोबारा ऐसा अवसर इस देश की जनता को मिलने वाला नहीं है । आपका संविधान जा रहा है ,संविधान बचाओ तभी देश बचेगा।
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