Halat-E-India

अगड़ा वनाम पिछड़ा

देश को अगड़े और पिछड़े तथा हिंदू और मुसलमान में बांटने का दोषी कौन ? :: वर्तमान राजनीति से स्पष्ट दिख रहा सवर्ण और पीडीए में अंतर :: देश और समाज को जाति - धर्म के आधार पर बांटने वाले देशद्रोही ? :: भाजपा ने हिंदू मुस्लिम की राजनीति शुरू की तो 60% हिंदुओं का वोट लेकर लगातार तीसरी बार सत्तासीन हुई पार्टी :: अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा दिया तो देश में तीसरे नंबर की पार्टी बनी सपा :: अगड़े और पिछड़े की खाई इतनी चौड़ी हो गई कि जो इसे पाटना चाहता वही पिट जाता है :: भाजपा ने जब मायावती को दर- किनार कर दलित वोट लेना चाहा तो सवर्ण खिसक गए और पार्टी बहुमत तक नहीं पहुंच पायी :: पीडीए के बल पर प्रदेश में दूसरे और देश में तीसरे नंबर की पार्टी बनाने वाले अखिलेश ने अब ब्राह्मण कार्ड खेला है, परिणाम 2027 में आएंगे।

परिवार हो या समाज, प्रदेश हो या देश सभी संविधान से ही चलते हैं , लेकिन जब भी कोई राजनैतिक दल अथवा नेता विशेष स्वार्थ लिप्सा का वशीभूत होकर सत्ता पर कब्जा करता है तो देश का विकास प्रभावित होता है, जैसा कि बीते दशक में हुआ । राजनीति के मुद्दे भले ही अलग हों लेकिन उद्देश्य राष्ट्र से जुड़ा होना चाहिए। किसी भी जाति या धर्म के साथ भेदभाव या द्वेष भावना से क्षणिक सुख तो पाया जा सकता है लेकिन देश या समाज का भला नहीं किया जा सकता । इतिहास गवाह है कि जब- जब राजनीति संविधान के विरुद्ध गई उससे पार्टी और देश दोनों का नुकसान हुआ, कांग्रेस इसका खामियाजा भुगत चुकी है और भाजपा भुगत रही है,और आगे भी भुगतेगी। जहां तक तानाशाही का सवाल है उसने हिटलर और रावण जैसों को भी सबक सिखाया। बसपा का सफाया कैसे हुआ और सपा लगातार चार चुनाव क्यों हारी, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सामने है और 2024 के चुनाव में जब चाचा भतीजा एक हो गए तो परिणाम कैसा रहा यह भी सबके सामने है। यदि सपा मुखिया को अपनी लोकप्रियता पर गर्व है तो वह अपना भ्रम भुला दें अन्यथा भविष्य बिगड़ सकता है। जब किसी नेता के अंदर अपनी काबिलियत का अभिमान आ जाता है तो वह पतन की ओर अग्रसर होने लगता है, जबकि सामाजिक समरसता बनाने वाले को जनता कभी नकारती नहीं है। उसूलों पर चलने वाला नेता हो या व्यापारी उत्तरोत्तर उन्नति करता है और जो उसूलों को छोड़कर अपनी चाहत बढ़ा देता है उससे उसके अपने मतदाता हों या ग्राहक नाराज हो जाते हैं, ऐसा ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किया है, पहले उन्होंने पी डी ए का नारा दिया तो जनता ने उसे सरआंखों पर रखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में अच्छी बढ़त दिलाई, लेकिन जीतने के बाद अखिलेश यादव को ऐसा लगा कि पीडीए तो अपना है ही क्यों न ब्राह्मणों का भी कार्ड खेला जाए और यही सोचकर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद एक ब्राह्मण को दे दिया। अखिलेश के इस कदम से ब्राह्मण कितने खुश होंगे यह तो समय बताएगा लेकिन पूरा पीडीए मायूस है। जिस पार्टी में यादव और मुसलमानों का गठजोड़ हो उसमें पिछड़ा वर्ग तो साथ आ सकता है लेकिन ब्राह्मण का वोट मुसलमान को कभी नहीं मिलेगा। सवर्ण केवल सवर्ण के पक्ष में ही मतदान करता है, भाजपा की पहचान सवर्ण पार्टी के रूप में है, तो योगी जी को हिंदुत्व के नाम पर राजपूत नेता के रूप में जाना जाता है। पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक योगी जी के साथ नहीं है, 2024 का लोकसभा चुनाव यही बताता है। अखिलेश यादव के ब्राह्मण कार्ड को पीडीए कितना सपोर्ट करेगा इसका पता 2027 के असेंबली इलेक्शन में लगेगा। जहां तक यूपी में होने वाले उपचुनावों का मामला है तो भाजपा उपचुनाव में कभी नहीं जीती है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में उन्नति करने का अधिकार होता है, इसी प्रकार प्रत्येक नेता को भी अपनी छवि निखार कर आगे बढ़ने का अधिकार होता है। व्यक्ति को अपनी उन्नति करने का तो अधिकार है लेकिन दूसरे को बर्बाद करने का हक नहीं होता है। यूपी में चल रहे बुलडोजर राज से अब तक हजारों करोड़ का नुकसान हो चुका है, यह राष्ट्र का नुकसान है जो एक व्यक्ति विशेष ने अपनी अलग छवि बनाने के लिएअख्तियार किया। आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश ने जितनी प्रगति की किसी से छुपा नहीं है, लेकिन जब से बुलडोजर नीति का पदार्पण हुआ तब से विनाश तो हुआ विकास नहीं हुआ। बुलडोजर का निर्माण विकास कार्यों को बढ़ाने के लिए किया गया था जिसका प्रयोग उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों को ढहाने के लिए किया जा रहा है, यह सब राजनीतिक अस्थिरता का प्रमाण है । किस व्यक्ति को सत्ता सैंपनी है, किसे नहीं ,देश की जनता को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।

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