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बेलगाम ब्यूरोक्रेसी डुबायेगी भाजपा की नैया ?

भय का वातावरण बना कर सत्ता का संचालन करना सरकार को पढ़ सकता है भारी :: ब्यूरोक्रेसी का बेलगाम होना ही बनेगा सरकार के पतन का कारण :: लोकसभा के आम चुनाव से पूर्व सरकार को बदलनी होगी ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली:: सत्ताधारी दल को लगानी होगी अपने नेताओं की बदजुबानी पर लगाम:: देश के उज्जवल भविष्य के लिए लोकतंत्र को जिंदा रखना जरूरी ।

केंद्र में भाजपा सरकार के दो कार्यकाल पूर्ण होने वाले हैं , सरकार दर सरकार केंद्र हो या राज्य भाजपा ने अपनी सरकार बनाने के लिए कैसे-कैसे हथकण्डे अपनाएं यह अपनी-अपनी राजनीति है । किसी अन्य राजनैतिक दल पर उंगली उठाना राजनैतिक दल का अधिकार होता है और इसी अधिकार का प्रयोग कर कांग्रेस की बुराई कर केंद्र में भाजपा सरकार बनी । भाजपा के पास उस समय तक अपनी कोई उपलब्धि नहीं थी तो वह दूसरे की बखिया उधेड़ कर ही सत्ता तक पहुंची और सत्ता में पहुंचते ही इतना दबदबा कायम कर दिया या यूं कहें कि दूसरों के दिल में भाजपा ने इतना भय कायम कर दिया कि भाजपा की बुराई करने की किसी भी दल या विरोधी नेता की हिम्मत नहीं होती है। केंद्र की सत्ता पर कायम होने के बाद भाजपा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज भारत की नंबर वन पार्टी बन गई है। भाजपा ने सत्ता पाने और उस पर काबिज रहने के लिए साम, दाम, दंड और भेद की राजनीति अपनायी, जिसे डराना था उसे डराया, जिसे खरीदना था उसे खरीदा और जिसे बेचना था उसे बेचा । जनता के लिए लुभावनी योजनाएं तो इससे पूर्ववर्ती सरकारें भी बनाती थी, लेकिन इस सरकार की योजना कारगर रही हो या नहीं, लेकिन योजना से अधिक धन प्रचार-प्रसार पर खर्च कर ऐसा सिद्ध कर दिया कि इससे अच्छी कोई अन्य सरकार नहीं रही। जनता ,मजदूर और गरीब तथा किसान को बेरोजगार या साधन हीन बनाकर लालच में फास लेने वाली भाजपा ने पूरे देश का वातावरण ही बिगाड़ दिया है और देश के बिगड़े इस बात आवरण के लिए हमारे देश की ब्यूरोक्रेसी जिम्मेदार है जिसने सरकार के बजाय आम जनता को अपना गुलाम समझना प्रारंभ कर दिया। जो सरकारी मशीनरी जनता की कमाई से ही वेतन भत्ते आहरित कर शाही जिंदगी जी रही है वही जनता को अपना गुलाम समझकर व्यवहार कर रही है, जो भाजपा सरकार के लिए सर्वाधिक नुकसान देश सिद्ध होगा । पूरे देश में ब्यूरोक्रेसी का भय व्याप्त है और न्यायपालिका भी अपने कर्तव्य का पालन संविधान और कानून सम्मत नहीं कर पा रही है , शायद उस पर भी कोई दबाव हो सकता है और यदि ऐसा है तो देश के संविधान और जनता के लिए यह अच्छा नहीं है। कार्यपालिका विधायिका के आदेशानुसार कार्य करती है, यह संविधान सम्मत है, लेकिन विधायिका हो या कार्यपालिका यदि संवैधानिक दायरे से ऊपर उठकर किसी स्वार्थ के लिए स्वेच्छाचारिता से कार्य करना प्रारंभ कर दे तो उसका दुष्प्रभाव सीधे आम जनता पर पड़ता है, जिसे जनता अपनी हकतलफी समझकर बदलाव का मन बना लेती है, और जनता का मूड जैसा बन जाता है ब्यूरोक्रेसी भी उसमे कुछ नहीं कर सकती । भाजपा सरकार वर्तमान में एक शक्तिशाली सरकार है और उसको कोई हटा पाएगा इसकी आशंका भी कम ही है। भारत लोकतांत्रिक देश है यहां लोक का तंत्र होता है, लेकिन जब लोक को नकार कर तंत्र ही स्वयं निर्णय लेने लगे तो व्यवस्था में बदलाव जरूरी हो जाता है। योजनाएं बनाना सरकार का काम होता है लेकिन इनको धरातल पर उतारना सरकारी मशीनरी का काम होता है। सरकारी मशीनरी की कार्यशैली से जनता खुश नहीं है , इसलिए यदि कभी सरकार का तख्ता पलटा तो उसका मुख्य कारण कार्यपालिका की कार्यशैली होगी आगामी लोकसभा चुनाव में अभी 1 वर्ष का समय शेष है और सरकार के पास पर्याप्त समय है कि ब्यूरोक्रेसी पर शिकंजा कसकर जनता का दिल जीत सकती है । और यदि सरकार ने जनता की आवाज नहीं सुनी तो जीत की हैट्रिक लगाने में दिक्कत हो सकती है और मुमकिन भी नामुमकिन सिद्ध हो सकता है।

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