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कलयुग जाएगा सतयुग आएगा

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर शतायु संत का सनसनीखेज रहस्योद्घाटन:: कलयुग का अंत होगा और सतयुग आएगा-स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती:: समय, सत्ता और युग सभी परिवर्तनशील हैं:: बहन -भाई के रिश्ते कलंकित हों और बाप ही अपनी बेटी पर कुदृष्टि डालें तो समझो कलयुग का अंतिम चरण है:: पूरा संसार मतलबी है ,संकट आने पर सभी साथ छोड़ देते हैं:: भगवान में आस्था रखें, गुरु की शरण में जाएं और स्वयं सामर्थ्यवान बनें::किसी से सहायता की उम्मीद न रखें, स्वयं सक्षम बने तभी कल्याण होगा।

हरिद्वार ।श्रीगीता विज्ञान आश्रम के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वतीजी महाराज ने कहा है कि पृथ्वी पर जब-जब पाप और अत्याचार बढ़ते हैं तो भगवान स्वयं अवतरित होकर प्रेम और करुणा का वातावरण पैदा करते हैं, जबकि मनुष्य को कर्म करने के लिए जन्म लेना पड़ता है। वे आज राजा गार्डन स्थित श्री हनुमान मंदिर में गुरुपूजा महोत्सव के अवसर पर श्रद्धालुओं को भागवत ज्ञान का अमृत पान करवा रहे थे। संसार में बढ़ रहे पापाचार ,अत्याचार एवं दुष्कर्मो को कलयुग का अंतिम चरण बताते हुए उन्होंने कहा कि जब बाप- बेटी पर कुदृष्टि डाले और भाई -बहन के रिश्ते कलंकित होने लगें तो समझ लो कि कलयुग का अंत होने वाला है । समाज से लुप्त हो रहे संस्कारों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता, युग और समय सभी परिवर्तनशील हैं। कलयुग का अंत होगा और पुनः सत्य के युग का आगमन होगा। समुंद्र मंथन, देवासुर संग्राम तथा वामन अवतार के साथ ही यदुवंश की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि अमृत तो सभी पीना चाहते हैं लेकिन विष पीने की सामर्थ्य तो शिव में ही होती है । गज और ग्राह का वृतांत सुनाते हुए उन्होंने कहा कि सुख के साथी सभी होते हैं लेकिन जब संकट आता है तो मनुष्य हो या जानवर सभी का परिवार साथ छोड़ देता है। श्रीमद्भागवत के सभी प्रसंगों को प्रेरणादायी बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवान के प्रति आस्थावान रहें क्योंकि संकट आने पर माता-पिता और गुरु के बाद भगवान ही सहायता करते हैं। सत्संगी एवं सज्जन व्यक्ति का साथ लें यह आवश्यक है लेकिन स्वयं इतने सक्षम बनें कि किसी की सहायता की आवश्यकता ही न पड़े, और सामर्थ्यवान वही बनता है जिस पर गुरु की कृपा होती है। कृष्ण जन्म के उपलक्ष में आज हनुमान मंदिर का सत्संग हाल सुंदर रूप में सजाया गया था जिसमें हुई नंदोत्सव की धूमऔर "नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की" के संगीतमय गीतों ने श्रोताओं को परम आनंद की अनुभूति करायी।भागवत प्रेमियों ने एक-दूसरे को उपहार देकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की खुशियां मनायीं तो आयोजकों ने माखन मिश्री का भगवान को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में भक्तों का अंत:करण पवित्र कराया।

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