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खुद खाएं दूसरों पर गुर्रायें

कब तक चलेगी काले धन वालों की सरकार:: धन कभी काला नहीं होता, उगाही का तरीका काली करतूत होती है :: हफ्ता वसूली का आरोप गुन्डों और बदमाशों पर लगता था, अब सरकार पर क्यों? बांडों का धन काला था या सफेद, खातों की जांच से चलेगा पता :: स्विस बैंक से ज्यादा काला धन स्टेट बैंक के माध्यम से लेनदेन में आया :: बान्ड की बिक्री में बैंक ने कितना कमाया इसका भी हो खुलासा:: ईडी से पूरी तरह उठ गया देश की जनता का विश्वास:: सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो एस आई टी का गठन :: कांग्रेस के खाते सीज, केजरीवाल को जेल, ऐसे चुनाव का लोकतंत्र से क्या मेल ।

जो भी कहा उसका उल्टा किया , तो अब उल्टी गिनती शुरू होने में भी देर नहीं । कर्मों का फल तो हर किसी को भुगतना ही पड़ता है, जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है । कहा था कि स्विस बैंक (एस बी) में जमा काला धन वापस लाएंगे, चवन्नी नहीं आई ,बल्कि अपने ही देश के एसबी (स्टेट बैंक) के माध्यम से करोड़ों के काले धन का कारोबार किया। शायद यही सोचा होगा कि इसका कभी खुलासा नहीं होगा और हम सदैव सत्ता में बने रहेंगे, यह भी कहा था कि "न खाऊंगा न खाने दूंगा" उसके उलट खुद खाया और दूसरों को भी खिलाया, बल्कि खुद तो खाते रहे और दूसरों पर गुर्राते रहे। इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले हमारे देश के उद्योगपति नंबर एक का कारोबार करते हैं या नंबर दो का , नंबर एक या नंबर दो क्या होता है सभी जानते हैं । शायद नंबर दो की रकम को ही काला धन कहते हैं, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और सरकार इस बात का खुलासा करने के लिए भी वाध्य है कि इलेक्टोरल बांड का धन काला था या सफेद और इलैक्टोरल बान्ड की खरीद फरोख्त में स्टेट बैंक की भागीदारी कितनी रही। नियमानुसार ड्राफ्ट हो या अन्य माध्यम, बैंक ट्रांजैक्शन शुल्क तो लेता ही है । यदि यह सिद्ध होता है कि खरीदे गए इलेक्टोरल बांड का धन काला था तो उस काले धन के लेनदेन में भारतीय स्टेट बैंक ने कितनी कमाई की, या यों कहें कि बैंक की हिस्सेदारी कितनी थी ? लगभग 50 वर्ष तक देश की सत्ता पर काबिज रहने के बाद भी कांग्रेस पार्टी उतनी उन्नति नहीं कर पाई जितनी भाजपा ने मात्र 10 साल में करके दिखा दी । भाजपा ने अब तक लोकसभा के दो आम चुनाव बड़ी शान के साथ जीते, हालांकि उनके स्वार्थपरक निर्णय की जानकारी जनता को पहले ही लग गई थी, फिर भी जनता दो बार मौका देना चाहती थी सो दिया। भाजपा का पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आना ही उसके अहंकार का कारण बना और उसने स्वयं को सबसे बड़ा विजेता इसलिए भी मान लिया था कि उसके द्वारा किए गए कारनामों की अब तक किसी को भनक तक नहीं लगी थी । एक कहावत है कि 'अति सर्वत्र वर्जयते' कहते हैं कि दाल में नमक तो चलता है, लेकिन दाल में जब अधिक नमक डाल दिया जाता है तो दाल खाने योग्य नहीं रह जाती है, यही हाल अब भाजपा का हो रहा है थोड़ा बहुत विपक्षियों को हड़काना, धमकाना, डराना तो चलता है लेकिन सत्ता के नशे में भाजपा इतनी चूर हो गई थी कि उसने लोकतांत्रिक ढंग से चयनित मुख्यमंत्रियों को ही जेल भेजना शुरू कर दिया और मुख्य विपक्षी दल के खाते ही फ्रीज कर दिए तो जनता का भी माता टनका और सुप्रीम कोर्ट भी हलचल में आया। नतीजा यह निकला कि आज भाजपा की भारत ही नहीं पूरे विश्व में फजीहत हो रही है। इतना ही नहीं गेहूं के साथ घुन (स्टेट बैंक)के भी पिसने के आसार नजर आने लगे हैं, क्योंकि इलेक्टोरल बांड की बिक्री कर उसने भी अच्छा मुनाफा कमाया और सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देने में काफी आनाकानी भी की। भारत सरकार जिस कार्यकाल को अमृतकाल का नाम दे रही है वह इतना काला निकलेगा किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थी। संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर की गई हफ्ता वसूली और चंदा लेकर चलवाए गए काले धंधों की पोल खुलने से भारत का पूरे विश्व में सिर शर्म से नीचे झुक गया है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सरदार पटेल और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर सभी शिक्षित और अधिवक्ता थे, उन्हें कानून की जानकारी थी, वे सभी कानून का सम्मान करते थे, लेकिन भारत में अब जो कुछ भी हो रहा है वह कानून के ज्ञान के अभाव में ही हो रहा है । यही बात केजरीवाल बार-बार कक्षा चार पास राजा की कहानी सुनाया करते थे, कई लोगों ने मना भी किया नहीं माने, उसका खामियाजा भले ही भुगतना पड़ा हो लेकिन भारत की जनता के दिलों में केजरीवाल का सम्मान और ग्राफ दोनों बढे हैं ,जबकि भाजपा का ग्राफ काफी नीचे जा रहा है ,चुनाव परिणाम क्या रहेंगे यह तो समय बताएगा, लेकिन जनता के दिल में जो सिम्पैथी भाजपा के प्रति थी वह बिल्कुल समाप्त हो गई है ,अब भाजपा से जनता का मोह भंग हो गया है।

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