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निकाय चुनाव में गिरा मतदान प्रतिशत

निकाय चुनाव में गिरता मतदान प्रतिशत लोकतंत्र के लिए खतरा# इबीएम वाले बड़े शहरों में गिरा मतदान प्रतिशत #मतपत्र से मतदान में ही जनता की दिलचस्पी #यूपी की जनता ने ईवीएम को नकारा ,मतपत्रों को स्वीकारा #चुनाव आयोग अब भी नहीं चेता तो 2024 का कैसा होगा नजारा #सर्वमान्य नहीं हो सकता चौथाई से कम जनता का चयनित प्रतिनिधि।

उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव का पहला चरण छुटपुट घटनाओं के साथ सकुशल संपन्न हो गया, लेकिन ऐसा पहली बार देखा गया कि मतदान प्रतिशत में रिकॉर्ड कमी रही, जो चुनावी प्रक्रिया पर न केवल प्रश्नचिन्ह लगा रहा है बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी भी बन रहा है। इससे पूर्व सर्वाधिक मतदान ग्राम प्रधान एवं पार्षद या सभासदों के चुनाव में होता था जो 70 से 90% तक भी रिकॉर्ड किया गया है। मतदान का मध्यम प्रतिशत विधानसभा चुनाव में 55 से 75% के मध्य रहता था, जबकि सबसे कम मतदान लोकसभा के चुनाव में दर्ज किया जाता था । स्थानीय निकाय चुनाव में इतना कम मतदान प्रतिशत इस तरफ भी इशारा करता है कि चुनावी प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है ।सौ मतदाताओं में से एक तिहाई या आधे से भी कम मतदाता यदि अपने मताधिकार का प्रयोग करें तो उस विजयी प्रत्याशी के पक्ष में कितना जन सहयोग माना जाएगा कि कुल जनसंख्या की चौथाई आवादी ने भी उस पर विश्वास नहीं किया। इस गिरते मतदान प्रतिशत पर स्वयं चुनाव आयोग तथा माननीय न्यायालय को संज्ञान लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश में एक नई चुनावी परंपरा डाली जा रही है ,यहां चुनाव को जाति और धर्म के आधार पर बांट कर देखा जा रहा है जो नितांत न्यायोचित नहीं है ।राज्य के 37 जनपदों में लगभग आधी आबादी ने ही मतदान किया हो यह चिंता का विषय है और सबसे बड़ी चिंता की बात तो यह है कि जिन शहरों और जनपदों को सीधे-सीधे धर्म के आधार पर बांटा गया था वहां सबसे कम मतदान हुआ है। लोगों में मतदान के लिए निकलने में दहशत सी महसूस की जा रही है। राज्य का वह जिला जिसका नाम इलाहाबाद से बदलकर प्रयागराज किया गया वहां की कानून व्यवस्था देखें तो लगभग 1 माह पूर्व पुलिस अभिरक्षा में दो अपराधियों को तीन हत्यारों ने धार्मिक नारा देते हुए मौत के घाट उतार दिया था वहां सबसे कम मात्र 33.61% ही मतदान हुआ । प्रधानमंत्री का चुनाव क्षेत्र वाराणसी 40.58% पर अटका तो मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र गोरखपुर भी 42.43 प्रतिशत पर ही अटक गया। मथुरा में 44.03 %और आगरा में मात्र 40.32% ही मतदान हुआ । गिरते मतदान प्रतिशत से यह तो सिद्ध हो ही रहा है कि जनता का विश्वास मतदान प्रक्रिया से उठ रहा है । मथुरा ,काशी, प्रयाग और आगरा के लिए ईवीएम से मतदान हुआ तो आधे से भी कम आबादी ने मतदान किया जबकि पिछड़े जनपदों में शुमार होने वाला जिला महाराजगंज जहां मतपत्रों से मतदान हुआ वहां का मत प्रतिशत सर्वाधिक66% रहा। जिन बड़े शहरों में धर्म और जाति आधारित राजनीति नहीं चली उनमे मुरादाबाद ,सहारनपुर ,मुजफ्फरनगर तथा झांसी इत्यादि में मतदान प्रतिशत 50 से 60 प्रतिशत के मध्य रहा। दूसरे चरण का मतदान 11 मई को होगा जिसके लिए चुनाव प्रचार की सीमा नियमानुसार 2 दिन पूर्व समाप्त हो रही है। चुनावी प्रक्रिया जारी होने के बाद कई प्रकार की व्यवस्थाएं स्वतः ही पैदा हो जाती हैं । ऐसा ही यूपी के प्रथम चरण के मतदान के समय भी देखा गया लगभग एक दर्जन ट्रेनें रद्द कर दी गई और परिवहन निगम की बसों समेत अनेकों निजी वाहनों को चुनाव के लिए अधिग्रहित कर लेने के बाद यूपी की आवागमन व्यवस्था पर बहुत बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा। रेल एवं बसें ही यातायात की धुरी हैं और दोनों पर मई के प्रथम पखवाड़े में ऐसा चुनावी ग्रहण लगा कि यातायात व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई । दूसरा चरण 11 मई को संपन्न होगा तब तक यूपी की यातायात व्यवस्था जस की तस रहेगी। पंगु बनी राज्य की यातायात व्यवस्था में 14 मई के बाद ही सुधार होने वाला है, जबकि यात्रा सीजन एवं शादी बारातों का सीजन होने के कारण आम जनता को इन चुनावों से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

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