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उत्तर प्रदेश क्यों नहीं बना उत्तम प्रदेश

नेता और ब्यूरोक्रेट्स करते हैं केवल अपना विकासः जलता भी नेता और सरकारी अधिकारी तथा कर्मचारियों की तरह करें अपना विकासः जनता पर होती है करो की भरमार उतना ही वेतन और भत्ते नेता तथा ब्यूरोक्रेट्स बढ़ा लेते हैंः सरकार के पास होती हैं असीमित शक्तियां लेकिन जनता का अधिकार होता है सर्वोपरि

भारत के संविधान में सरकार के पास असीमित शक्तियां होती हैं, लेकिन जो पार्टी सत्ता में आती है वह उन शक्तियों का प्रयोग अपनी सरकार और पार्टी की मजबूती के लिए करती है। यदि केंद्र एवं राज्यों की सरकारें स्वार्थ त्याग कर केवल राष्ट्र उन्नति के एजेंडे पर कार्य करें तो भारत न केवल विश्व विजेता बल्कि आत्म निर्भर भी बन सकता है और पूरे विश्व का संरक्षण एवं संवर्धन भी कर सकता है । हमारे देश में अकेला उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जिसमें विकास की अपार संभावनाएं हैं और भारत का सबसे बड़ा प्रदेश होने के साथ-साथ इतना सक्षम है कि देश को सर्वाधिक प्रधानमंत्री इसी प्रदेश ने दिए। पार्टी पॉलिटिक्स से हटकर यदि राज्य के अतीत पर नजर डाली जाए तो यहां की प्रबुद्ध जनता ने अपने रहनुमा के तौर पर सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया। जातीय समीकरण भी साधे और अंतिम प्रयास के तौर पर कहते थे कि भारत ऋषि और कृषि प्रधान देश है तो यूपी ने एक संत को भी सत्ता सौंपकर समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं छोड़ा जिसे सेवा का अवसर प्रदान न किया हो। लेकिन........ उत्तर प्रदेश आज भी भारत का भाग्य विधाता के रूप में अपनी अलग पहचान रखता है, यदि ऐसा न होता तो प्रधानमंत्री बनने के लिए नरेंद्र मोदी को गुजरात छोड़कर यूपी से चुनाव लड़ने की आवश्यकता न होती। कहते हैं कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हो तो उस राज्य का विकास अच्छा होता है , यह कोई अपवाद नहीं था, आजादी के बाद से लगभग 4 दशकों तक तो एक ही पार्टी की केंद्र और राज्य में सरकार रही परिणाम स्वरुप उत्तर प्रदेश ने अप्रत्याशित विकास किया।यूपी ने सवर्ण एवं पिछड़ा और दलित सभी को चुना लेकिन राज्य की सत्ता पर कब्जा सर्वाधिक समय तक सवर्णों का रहा, लेकिन विकास की दृष्टि से देखा जाए तो राज्य का सर्वांगीण विकास गैर सवर्ण सत्ता में ही हुआ। जो पार्टी आज केंद्र और राज्य की सत्ता में है उसकी मजबूती की बुनियाद भी एक पिछड़े वर्ग के नेता ने ही रखी थी । उत्तर प्रदेश देश की राजनीति का गढ़ बन गया लेकिन देश के आर्थिक विकास की धुरी नहीं बन पाया , शायद किसी राजनेता का ऐसा विजन नहीं रहा होगा कि वह उत्तर प्रदेश में समृद्धि बढ़ाकर साधन संपन्न राज्य बनाये।सत्ता किसी भी दल की रही हो सभी ने अपने - अपने विकास के लिए काम किया और विडंबना यह कि सभी दलों के राजनेता एक दूसरे की जमकर बुराइयां करते हैं। या तो दूसरों की बुराई करने वाले नेता झूठ बोलते हैं और सच्चे हैं तो सभी दल बुरे हैं। किसी भी बुरे व्यक्ति से सच्चाई और अच्छाई की उम्मीद नहीं की जा सकती , लेकिन उत्तर प्रदेश को भारत का सर्वाधिक विकसित और साधन संपन्न राज्य बनाना है तो उन बुरे इंसानों को ही अच्छा इंसान बनाना होगा, जो सत्ता पाकर स्वार्थ में लिप्त हो जाते हैं। जिस प्रकार स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है , उसी प्रकार से अपना विकास करना भी हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, इस बात को अब तक केवल राजनेताओं और सरकारी अधिकारी तथा कर्मचारियों ने ही जाना और अपना - अपना विकास कर लिया। राज्य की जनता पर जितने करों और जुर्मानों की भरमार हो रही है, राजनेता और सरकारी मशीनरी के वेतन और भत्ते उससे भी अधिक गति से बढ़ रहे हैं । क्या कभी किसी राजनेता ने यह सोचा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनने से पूर्व वह अपने ऊपर कितना खर्चा करता था और आज कितना कर रहा है , यह सवाल पूछने की सामर्थ्य मीडिया भी खो चुकी है। प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, आईपीएस हो याआईएएस या प्रांतीय सेवा का कोई भी अधिकारी, सभी जनता के पैसे पर ऐश कर रहे हैं, क्या इनमें से कोई यह सोच रहा कि आम जनता को भी हमारी तरह ही जीने का अधिकार है, शायद नहीं! यह सभी जनता का खाते हैं और जनता पर ही गुर्राते हैं ।जब इन लोगों ने अपने-अपने ऐसो - आराम एवं शाही ठाठ - वाठ के लिए नियम और कानून बना लिए तो जनता को भी अपने कल्याण का मार्ग स्वयं ही चुनना पड़ेगा। जन कल्याण का मार्ग तलाशने का यह क्रम आगे भी जारी रहेगा।

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