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देश चाहिए या धर्म ?

अधूरे मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा पर छलका शंकराचार्यों का दर्द :: पीएम और सीएम मिलकर अपने-अपने दो कार्यकालों में भी पूरा नहीं बनवा पाए एक मंदिर :: राज्य से बाहर का सीएम और पीएम देने का प्रायश्चित कर रही यूपी की जनता :: दूसरे नेताओं की बुराई और धर्म विशेष पर बुलडोजर की कार्यवाही के अलावा इस दल में और कुछ नहीं :: पूरे देश की तुलना में यूपी का युवा एवं किसान सर्वाधिक बेहाल :: महिला का प्यार न पाने वालों से मातृशक्ति के सम्मान की उम्मीद रखना बेमानी :: देश को खुशहाल बनाने के लिए यूपी को अपना सीएम और अपना ही पीएम बनाना होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक हीरो बनकर अपने कार्यकाल का एक दशक लगभग पूर्ण कर लिया है। गुजरात से आने के बाद उत्तर प्रदेश की जनता ने उन्हें एक नहीं बल्कि दो बार देश का भाग्य विधाता बनने का सौभाग्य प्रदान किया । अब से 10 वर्ष पूर्व उनकी राष्ट्रीय राजनैतिक यात्रा राम मंदिर से प्रारंभ हुई थी जो 10 वर्ष बाद राम मंदिर पर ही पूर्ण हुई । कश्मीर में धारा 370 थी या हट गई उससे देश की जनता को कोई लेना देना नहीं है ,और राम मंदिर निर्माण भी एक धर्म की आस्था के अलावा न तो रोजगार के अवसर देगा न ही बेरोजगारी या महगाई दूर करेगा । जहां तक जनता को उपकृत करने का प्रश्न है तो 15 -15 लाख से प्रारंभ होकर 5 किलो राशन पर अटकने के अतिरिक्त देश की जनता और विशेषकर युवा पीढ़ी ने जो इच्छाएं सरकार से पूर्ण होने की उम्मीदें पाली थीं वह पूर्ण नहीं हो पाई हैं। धार्मिक उन्माद और राम मंदिर के उत्साह ने हिंदुओं के नवयुवकों की बेरोजगारी की लिस्ट और लंबी हो गई है। अयोध्या में राम मंदिर भले ही न्यायालय के आदेश पर बना है लेकिन इसका सारा श्रेय भाजपा को ही जाता है। अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद पूरे देश के कुछ हिंदुओं ने मोदीजी को साधुवाद दिया है । राम मंदिर का निर्माण किसी राजनीतिक दल या धर्म विशेष की आस्था का विषय हो सकता है, लेकिन देश की आवश्यकता नहीं है। हमारे देश में युवा शक्ति की संख्या 40% है जिसमें से 70% बेरोजगार हैं । 2014 में सरकार बनने से पूर्व युवा शक्ति को प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में नौकरियां देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन सरकार युवाओं की आकांक्षाओं पर खड़ी नहीं उतरी। भारत की 70% आवादी कृषि पर आधारित है और किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया गया था, लेकिन किसानों को अपनी उपज का मूल्य प्राप्त करने के लिए लंबा आंदोलन करना पड़ा, फिर भी उनकी दशा और दिशा नहीं बदली। शिक्षा और चिकित्सा समाज की मूल आवश्यकता होती है लेकिन कोरोनाकाल में सरकार इस पर भी खरी नहीं उतरी । दवा और ऑक्सीजन ही नहीं बल्कि अंतिम वस्त्र के रूप में कफन और दफन करने के लिए लकड़ियां भी नसीब नहीं हुई। हजारों शवों को या तो नदियों में बहाया गया या फिर दूसरे धर्म की परंपरा के अनुरूप जमींदोज किया गया ,आखिर जनता अपने दर्दों को कब तक दबा कर रखेगी। यह सत्य है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है और उत्तर प्रदेश की जनता ने मोदी जी को प्रधानमंत्री बनने के दो शानदार अवसर प्रदान किये, लेकिन मोदीजी कृषि और युवाओं की समस्याओं के हल के स्थान पर काशी और अयोध्या तक ही सीमित रहे । उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन बड़ी उम्मीद रखने के बाद भी राज्य की जनता को अपेक्षित आयाम नहीं मिलने से यहां के युवाओं और किसानों का विचार बदल रहा है। यूपी की जनता अब भली-भांति समझ गई है कि मोदी जी के पास धार्मिक एजेंडे के अलावा विकास की कोई योजना नहीं है , और केवल राम - नाम का जाप करने से राज्य की जनता का भला होने वाला नहीं है। भाजपा यदि पुनः इस वर्ष केंद्र की सत्ता में रहना चाहती है तो उसे नए नेतृत्व का भरोसा तो देना ही पड़ेगा , 10 वर्ष में विकास का मुद्दा ही गायब हो गया, विकास का हाल यह है कि 10 वर्ष में यह सरकार राम मंदिर भी पूरा नहीं बना पायी, अधूरे मंदिर में ही प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई , अब जनता आगे किस आधार पर विश्वास करेगी ? उत्तर प्रदेश ने इस देश को अब तक सर्वाधिक प्रधानमंत्री दिए और यह भी सत्य है कि जो प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश मूल के थे उन्होंने ही देश को आगे बढ़ाया, लेकिन गुजराती माडल दिखाकर जनता को बरगलाया गया, लेकिन जनता को इस बात का एहसास दस साल बाद हुआ । देश में क्या बदलाव होगा यह तो आसान्न लोक सभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा ।

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